किसी भीषण
सूखे से आक्राँत
बँजर जमीन के सद्रिश्य
चटखता जा रहा है
मेरा ह्रिदय
काश
तुम घटा बनकर
मेरे जीवन मेँ आती
और
इस शुष्क ह्रिदय मेँ
यह विश्वास
पुनः जगा पाती
कि
बसंत आज भी
निहित है मुझमें ।
The dawn chorus for a flawless freedom
किसी भीषण
सूखे से आक्राँत
बँजर जमीन के सद्रिश्य
चटखता जा रहा है
मेरा ह्रिदय
काश
तुम घटा बनकर
मेरे जीवन मेँ आती
और
इस शुष्क ह्रिदय मेँ
यह विश्वास
पुनः जगा पाती
कि
बसंत आज भी
निहित है मुझमें ।
Published in Poetry
Comments